Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान में Vasundhara Raje को उसी के गढ़ में हराने का कांग्रेस का क्या प्लान?

जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनाव-2018 में प्रदेश में सभी लोगों की निगाहें झालरापाटन सीट पर टिकी थीं। सीएम वसुंधरा राजे के इस अभेद्य गढ़ में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस ने तगड़ा प्लान बनाया था। और बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेन्द्र सिंह को वहां भेजा। जसवंत सिंह परिवार की बीजेपी से, खासतौर पर सीएम राजे से नाराजगी, किसी से छिपी नहीं है। लेकिन ५ साल बाद हालात बिल्कुल उलट हो रहे हैं। बीजेपी का दामन छोड़ने वाले पूर्व सांसद मानवेन्द्र सिंह की विधानसभा चुनाव २०२३ से पहले, घर वापसी होने वाली है। अगले कुछ महीनों में ही राजस्थान में फिर से चुनाव हो रहा है। अब यही चर्चा हो रही है कि वसुंधरा राजे के गढ़ में कांग्रेस अपने किस नेता को चुनावी मैदान में उतारेगी?

 


लेकिन आज हम बात करेंगे पिछले विधानसभा चुनाव में क्या हुआ था 

बात २०१४ के लोकसभा चुनाव की है। तब बाड़मेर-जैसलमेर क्षेत्र से जसवंत सिंह को टिकट नहीं मिला। इससे वो इतने खफा हुए कि जिस पार्टी को खड़ा करने में उन्होंने अपनी उम्र बिता दी.....  उसी पार्टी के खिलाफ वे चुनाव मैदान में उतर गए।

सिंह का टिकट कटने से मारवाड़ में राजूपत समाज के एक धड़े ने भी बीजेपी से कुछ दूरी बना ली थी। बीजेपी के टिकट पर बाड़मेर के शिव विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र ने भी बाद में पार्टी से किनारा कर लिया था। उन्होंने भी बीजेपी को अलविदा कहकर कांग्रेस ज्वॉइन कर ली।


कांग्रेस ने उठाना चाहा फायदा और बना ली ये रणनीति 


२०१८ में कांग्रेस भी जसवंत सिंह की बीजेपी से नारागजी का फायदा उठाना चाहती थी। जसवंत सिंह के परिवार और राजपूत समाज के एक धड़े की बीजेपी से बढ़ी दूरियों को भूनाने के लिए कांग्रेस ने रणनीति बनाई। इसके तहत मानवेन्द्र सिंह को झालरापाटन से सीएम के सामने चुनाव मैदान में उतार दिया। इसके बाद सबकी  निगाहें झालरापाटन में हुए मुकाबले पर टिकी रही।


लेकिन राजे का अभेद्य मजबूत गढ़ झालरापाटन नहीं भेद पाई 

बीजेपी प्रत्याशी सीएम वसुंधरा राजे झालावाड़-बारां लोकसभा सीट से पांच से बार सांसद चुनी जा चुकी हैं। यहीं से ५  बार विधायक रह चुकी हैं। २०१८ के चुनाव से पहले तीन बार से लगातार वे झालरापाटन से विधायक बन चुकी थीं। वो दो बार राजस्थान की सीएम रह चुकी हैं। वे एक बार प्रदेश बीजेपी की कमान भी संभाल चुकी हैं और केन्द्र में मंत्री भी रह चुकी हैं। यही कारण रहा कि मानवेंद्र और कांग्रेस का कोई दांव वहां नहीं चल सका। वसुंधरा राजे ने यहां ३३८२८ वोटों से मानवेंद्र सिंह को शिकस्त देते हुए जीत हासिल की। 


जीत का रिकॉर्ड भी काम न आ सका 


बता दें कि 2003 में मानवेंद्र सिंह सबसे ज्यादा मतों से लोकसभा चुनाव जीते थे। २०१८ में कांग्रेस प्रत्याशी बनने से पहले मानवेन्द्र सिंह शिव से विधायक थे। मानवेन्द्र सिंह पूर्व में बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके थे। 2003 के लोकसभा चुनाव में सिंह के नाम सबसे ज्यादा मतों से जीतने का रिकॉर्ड था। सिंह ने उस समय 2,72000 से भी अधिक मतों से जीत दर्ज की थी। लेकिन वसुंधरा के सामने उनको जीत हासिल नहीं हो सकी। अब देखना है कि कांग्रेस वसुंधरा राजे के खिलाफ इस बार क्या प्लान बनाती है? 


Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

और नया पुराने