हिन्दू धर्म के अनुसार सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना "मकर-संक्रांति" (Makar Sankranti) कहलाता है। मकर-संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। इस दिन व्रत और दान (विशेषकर तिल के दान का) का काफी महत्व होता है।
मकर संक्रांति 2016 (Makar Sankranti 2016) वर्ष 2016 में मकर संक्राति का त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इस पर्व को देश में कई नामों से जाना जाता है जैसे बिहार में खिचड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, असम में बिहू आदि।
मकर संक्रांति व्रत विधि
भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। इस व्रत में संक्रांति के पहले दिन एक बार भोजन करना चाहिए। संक्रांति के दिन तेल तथा तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव की स्तुति करनी चाहिए। मान्यतानुसार इस दिन तीर्थों में या गंगा स्नान और दान करने से पुण्य प्राप्ति होती है। ऐसा करने से जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही संक्रांति के पुण्य अवसर पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण अवश्य प्रदान करना चाहिए।
संक्रांति पूजा समय
संक्रांति के दिन पुण्य काल में दान देना, स्नान करना या श्राद्ध कार्य करना शुभ माना जाता है। इस साल यह शुभ मुहूर्त 15 जनवरी, 2016 को सुबह 7 बजकर 19 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक का है। (शुभ मुहूर्त दिल्ली समयानुसार है।)
मकर संक्रांति पूजा मंत्र
मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव की निम्न मंत्रों से पूजा करनी चाहिए:
सूर्याय नम:
आदित्याय नम:
सप्तार्चिषे नम:
अन्य मंत्र हैं-
ऋड्मण्डलाय नम: , सवित्रे नम: , वरुणाय नम: , सप्तसप्त्ये नम: , मार्तण्डाय नम: , विष्णवे नम:
मकर संक्रांति 2016 (Makar Sankranti 2016) वर्ष 2016 में मकर संक्राति का त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इस पर्व को देश में कई नामों से जाना जाता है जैसे बिहार में खिचड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, असम में बिहू आदि।
भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। इस व्रत में संक्रांति के पहले दिन एक बार भोजन करना चाहिए। संक्रांति के दिन तेल तथा तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव की स्तुति करनी चाहिए। मान्यतानुसार इस दिन तीर्थों में या गंगा स्नान और दान करने से पुण्य प्राप्ति होती है। ऐसा करने से जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही संक्रांति के पुण्य अवसर पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण अवश्य प्रदान करना चाहिए।
ऋड्मण्डलाय नम: , सवित्रे नम: , वरुणाय नम: , सप्तसप्त्ये नम: , मार्तण्डाय नम: , विष्णवे नम: